Madhu varma

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लेखनी कविता -इस तरह तो - बालस्वरूप राही

इस तरह तो / बालस्वरूप राही


इस तरह तो दर्द घट सकता नहीं
इस तरह तो वक़्त कट सकता नहीं
आस्तीनों से न आँसू पोछिए
और ही तदबीर कोई सोचिए।

यह अकेलापन, अँधेरा, यह उदासी, यह घुटन
द्वार तो हैं बंद भीतर किस तरह झाँके किरण।

बंद दरवाज़े ज़रा-से खोलिए
रौशनी के साथ हँसिये-बोलिए
मौन पीले पत्ते सा झर जाएगा
तो ह्रदय का घाव ख़ुद भर जाएगा।

एक सीढ़ी है ह्रदय में भी महज घर में नहीं
सर्जना के दूत आते हैं सभी होकर वहीं।

ये अहम की श्रृंखलाएं तोड़िए
और कुछ नाता गली से जोड़िए
जब सडक का शोर भीतर आएगा
तब अकेलापन स्वयं मर जाएगा।

आईए, कुछ रोज़ कोलाहल भरा जीवन जिएँ
अंजुरी भर दूसरों के दर्द का अमृत पिएँ।

आईए, बातून अफ़वाहें सुनें
फ़िर अनागत के नए सपने बुनें
यह सिलेटी कोहरा छँट जाएगा
तो ह्रदय का दुःख दर्द ख़ुद घट जाएगा।

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